भोपाल / ग्वालियर : साल 2024 दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक पर्व का वर्ष है , इस साल विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव है, चुनावी वर्ष अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह साल आगामी पाँच सालों में हमारा व हमारे देश के भविष्य का निर्माणक व निर्णायक कहलायेगा । हम अगले पाँच सालों में कहाँ होंगे इसका चयन भी इस साल में होगा ।
ऐसा कहने के पीछे वजह है क्योंकि भारत जैसे विविधतापूर्ण देश की दशा और दिशा का निर्माण यहाँ की राजनीतिक गतिविधियों पर निर्भर करता है, हमारे आर्थिक,सामाजिक,राजनैतिक,सांस्कृतिक,और नैतिक विकास की ज़िम्मेदारी यहाँ की राजनैतिक व्यवस्था पर निर्भर करती है।
भारत जैसे देश में भले ही शिक्षा, जागरूकता , या आधुनिकता की आज भी कमी क्यों ना हो किंतु राजनैतिक चेतना का वरदान यहाँ के हर व्यक्ति को लगा है ।चाहे वह आर्थिक,सामाजिक रूप से सक्षम हो या वंचित सभी की यहाँ अलग अलग राजनैतिक चेतना है, आज किसी भी चौराहे,गाँव की चौपाल, ट्रेन के सामान्य डिब्बे , चाय व कटिंग की दुकान पर राजनीतिक विषयों पर बात होना सबसे आम है , या तो व्यक्ति मौजूदा सरकार व विचारधारा का समर्थक होगा या विरोधी किंतु सभी के विचारों में अनिवार्य रूप से राजनीतिक विषय अवश्य ही शामिल होंगे ।
भारतीय लोकतंत्र को मज़बूत बनाने में ग्वालियर चम्बल के इस क्षेत्र का योगदान सदैव से ही रहा है, वर्तमान में देश की प्रमुख पार्टी के निर्माण में नींव के पत्थर कहलाने वाले भारतीय राजनीति के भीष्म श्रद्धेय अटल जी व श्रद्धेय राजमाता रहे हैं, यह क्षेत्र प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से सदैव ही सत्ता के केंद्र में रहा है। ऐसे में इस क्षेत्र पर सदैव से ही लोगो की नजर रही है। चूंकि अब देश में लोकसभा चुनाव का माहौल है ऐसे में यह चर्चा उठ पड़ी है कि राजनीति की असीमित इकक्षाओं से भरा यह क्षेत्र किसके हाथ आएगा।
ज्योतिरादित्य सिंधिया
सिंधिया परिवार मध्य प्रदेश युवा देश की राजनीति का सदैव से ही केंद्र बिंदु रहा है किंतु वर्तमान समय में राज्यसभा सांसद व भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख नेता के रुप में ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रदेश की राजनीति में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका में देखे जा रहे हैं। चाहे बात सत्ता में स्थापित कांग्रेस सरकार को गिराकर भाजपा की सरकार बनाने में की गई मदद की हो या फिर 2023 विधानसभा चुनाव में अपनी सहयोग से पार्टी को प्रचंड बहुमत दिलाने की सिंधिया सभी भूमिकाओं में पार्टी की अपेक्षाओं पर खरे उतरे हैं।
अब चूंकि देश में लोकसभा चुनाव होने को है तो राजनीतिक गलियारों में सिंधिया के लोकसभा क्षेत्र को लेकर भी कयास लगाया जा रहा है क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल, कैलाश विजयवर्गीय जैसे दिग्गज नेताओं के चुनाव लड़ने और सिंधिया की ना उतरने से यह तो तय है कि वे देश की राजनीति में अपना लोहा मनवा चुके हैं।वे लोकसभा के इच्छुक हैं इस बात में भी दो राय नहीं हैं। अब राजनीतिक सलाहकार यह अंदाजा लगा रहे हैं कि उनका चुनावी क्षेत्र क्या होगा क्या 2019 में गुना में परास्त सीट से लड़ेंगे या फिर ग्वालियर की सुरक्षित सीट से उतरेगें। इन दोनों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है हालांकि राजनीति के समझदार लोग इसे स्वाभिमान की लड़ाई के रूप में देख रहे हैं। उनका अंदाजा है कि सिंधिया अपना गढ़ गुना संसदीय क्षेत्र पुनः हासिल करने का प्रयास करेंगे।
नरेंद्र सिंह तोमर
मध्य प्रदेश की राजनीति का वह नाम जिसने फर्श से लेकर अर्श तक का सफर तय किया चाहे बात पार्टी में उनके कद की हो या उनकी भूमिका कि वह हमेशा ही अपने दायित्वों पर खरे उतरे, तोमर जनसंघ के जमाने से ही पार्टी के कार्यकर्ता रहे हैं और उनका राजनीतिक करियर भी भारतीय राजनीति के पितामह कहे जाने वाले अटल बिहारी बाजपेई वश्रद्धेय राजमाताके सानिध्य में फला फूला , अपने जीवन में उन्होंने कई मुकाम हासिल किए। तोमर शायद उन खास नेताओं में रहे हैं जिन्होंने अब तक हार का मुंह तक नहीं देखा और पार्टी को हर संभव मजबूत बनाने प्रयास किया है। चाहे बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से उनके संबंधों के बारे में की जाए या फिर 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया को पार्टी में शामिल कर कांग्रेस की सरकार गिराने में उनकी भूमिका का वर्णन किया जाए। तोमर ने हर जगह स्वयं को सिद्ध किया है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा की कृपा से उन्हें एक से बढ़कर एक जिम्मेदारी मिली और वे उन सब पर खरे उतरे। किंतु कुछ समय से उनके सितारे गर्दिश में चल रहे हैं देश का सबसे बड़ा किसान आंदोलन उनके कृषि मंत्री के कार्यकाल में होना, और 2023 मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान उनकी बेटे के एक के बाद एक वीडियो जिसने सैकड़ों करोड़ों के लेन-देन जैसे विवादों के कारण तोमर की नैतिकता खतरे में पड़ती नजर आई है।तोमर वर्तमान में मध्य प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष के रुप में पदस्थ हैं। अब देखना वाकी यह है कि क्या तोमर पुनः केंद्र सरकार में वापसी कर सकते हैं या इसी पद पर बने रहेंगे।
इस बात पर भी चर्चा चल रही है कि तोमर अपने लोकसभा क्षेत्रों (ग्वालियर व मुरैना) से चुनाव लड़ने की इकक्षा शीर्ष नेतृत्व के सम्मुख ज़ाहिर कर चुके हैं। यह बात कितनी सच है कितनी झूठ इसका पता तो भविष्य में ही चलेगा।
नरोत्तम मिश्रा
नरोत्तम मिश्रा मध्य प्रदेश की राजनीति के जाने-माने नाम है उनका जीवन छात्र राजनीति से शुरु होकर ग्रह मंत्रालय तक पहुंचा उन्होंने वर्ष 1993 में पहला चुनाव लड़ा जिसमें वे पराजय हुए। फिर 1998 और 2003 में चुनाव लड़ा और 2003 में भी बाबूलाल गौर सरकार में राज्य मंत्री बने, तब से लेकर अब तक वे कई जिम्मेदार पदों पर रहे हैं। पिछली शिवराज सरकार में उन्हें शीर्ष दो नंबर का नेता माना जाता था 2018 में जब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सरकार बनी और कमलनाथ मुख्यमंत्री बने । हालांकी 2020 में कमलनाथ सरकार गिरी और सिंधिया सहित कई कांग्रेसी विधायक भाजपा में शामिल हुए इस ऑपरेशन लोटस में भी नरोत्तम मिश्रा ने बड़ी जिम्मेदारी निभाई थी। उसके बाद भाजपा सरकार मे मिश्रा को ग्रह मंत्री बनाया गया. गृहमंत्री के तौर पर मिश्र की छवि एक राष्ट्रवादीकट्टर नेता की रही है। जिसमें भी कभी फिल्मों गानों विज्ञापनों आदि पर टिप्पणी करते तो कभी हथियारों के लाइसेंस बनाने के लिए पैसों के लेन देन आरोपों से घिरे रहे। इसका परिणाम उन्हें 2023 के विधानसभा चुनाव में हार स्वरुप झेलना पड़ा। अब चूंकि लोकसभा चुनाव का दौर प्रारंभ हो चुका है तो इस दौरान राजनितिक गलियारों में उनके नाम को भी लेकर एक चर्चा बनी हुई है एक की वे दतिया-भिंड, मुरैना-श्योपुर, याफिर ग्वालियर से लोकसभा चुनाव में दावेदारी कर सकते हैं।
विवेक नारायण शेजवलकर
विवेक नारायण शेजवलकर ऐसे छुपे रुस्तम राजनेता हैं जो किस्मत के धनी लोगों में से एक हैं इस बात का प्रमाण आगे उनकी राजनैतिक सफर में देखने को मिलता है विवेक नारायण के पिता नारायण कृष्णशेजवलकर जो कि जनसंघ व भारतीय जनता पार्टी के वट वृक्ष के रूप में कहे जा सकते हैं। उनका नाम देश के पहले गैर कांग्रेसी महापौर मैं भी शामिल है। उन्हीं का पुण्य प्रभाव है कि उनके पुत्र विवेक शेजवलकर आज भारतीय राजनीति में स्थापित राजनेता है विवेक शेजवलकर को स्थानीय लोग किस्मत का धनी नेता मानते हैं।
विवेक नारायण शेजवलकर ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुवात 1998 में विधानसभा चुनाव से कि जिसमें वे पराजित हुए तथा आगे चलकर 2004 में उन्हें ग्वालियर विकास प्राधिकरण में अध्यक्ष मंत्री दर्जा दिया गया। किस्मत का फेर देखिए कि उन्हें 1 वर्ष ही हुआ था अध्यक्ष बने हुए की अगले ही वर्ष 2005 में उन्हें ग्वालियर का महापौर चुन लिया गया तथा इसके बाद वे संगठन के कई पदों पर रहे और 2015 में उन्हे पुनः ग्वालियर से महापौर चुन लिया गया। यहाँ किस्मत फिर बदली और महापौर कार्यकाल पूर्ण होने से पहले ही उन्हें 2019 में ग्वालियर से लोकसभा सांसद चुना गया उनके कार्यकाल को देखते हुए भी इस बार भी अटकलें लगाई जा रही हैं कि उन्हें इस लोकसभा से उम्मीदवार घोषित किया जा सकता है।
जय भान सिंह पवैया
भारतीय जनता पार्टी व राष्ट्रवाद के कट्टर नेताओं में शुमार एक प्रसिद्ध नाम जय भान सिंह का हैं। उनकी छवि हिंदूवादी नेता की रही है वह बजरंग दल के दूसरे राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हैं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्ण कालिक प्रचारक भी रहे हैं। तथा राम मंदिर आंदोलन अयोध्या में उन्होंने कार सेवक के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
जय भान सिंह पवैया पहली बार 1999 में लोकसभा सदस्य चुने गए। वही 2013 में विधानसभा सदस्य बनें तथा संगठन के अनेक पदों पर तैनात रहे हैं। चूंकि इस बार राम मंदिर निर्माण का माहौल बना हुआ है और पवैया कि छवि राम मंदिर आंदोलन में निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका के रूप में बनी हुई है। तो यह कयास राजनीतिक लोगों द्वारा लगाया जा रहा है कि इस बार लोकसभा चुनाव में ग्वालियर से प्रत्याशी के रूप में एक नाम जय भान सिंह पवैया का भी हो सकताहै।
अब देखना यह बाकी है कि ग्वालियर की यह सीट किसके हिस्से आती है।
भूपेंद्र चौहान की कलम से